Supreme Court Guidelines and Delhi’s GRAP-II: Legal and Policy Framework for Combating Air Pollution
दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता,सर्वोच्च न्यायालय की गाइडलाइंस और जीआरएपी-2 प्रतिबंध: एक समग्र विश्लेषण
परिचय
हर साल सर्दियों के आते ही दिल्ली-एनसीआर की हवा जहरीली हो जाती है। सुबह की धुंध अब प्रकृति की सुंदरता नहीं, बल्कि प्रदूषण की परत बन चुकी है। दीवाली से पहले ही आसमान धुएं की चादर में लिपट जाता है और लोग मास्क को फिर से अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लेते हैं।
19 अक्टूबर 2025 को, जब वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) लगातार “खराब” से “बहुत खराब” की ओर बढ़ने लगा, तब केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के दूसरे चरण (GRAP-2) को लागू करने की घोषणा की। यह फैसला दीवाली से एक दिन पहले आया, जब हवा में पहले से ही आतिशबाज़ी, धूल और पराली के धुएं की बू थी।
इसके पूर्व ही सर्वोच्च न्यायालय ने भी दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए थे। एक तरफ यह कदम नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी थे, तो दूसरी ओर इनसे धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक परंपराओं को लेकर नई बहसें भी शुरू हो गईं।
दिल्ली की हवा: दम घोंटती हकीकत
दिल्ली की हवा का संकट किसी एक कारण से नहीं, बल्कि कई स्तरों पर पनपे अव्यवस्थित विकास का परिणाम है। वाहनों से निकलता धुआं, निर्माण स्थलों की उड़ती धूल, पराली जलाने का धुआं और औद्योगिक उत्सर्जन — सब मिलकर एक ज़हरीला मिश्रण बनाते हैं।
इस वर्ष अक्टूबर के मध्य तक दिल्ली का AQI औसतन 270 से 300 के बीच रहा, जो “खराब” श्रेणी में आता है। मौसम विभाग के अनुसार, हवा की गति कम होने और तापमान गिरने से प्रदूषक ज़मीन के पास जमा हो रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हालात यही रहे, तो दीवाली के बाद दिल्ली “बहुत खराब” श्रेणी में पहुंच जाएगी।
सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका: संवैधानिक जिम्मेदारी और संतुलन की तलाश
साल 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था — पारंपरिक पटाखों पर प्रतिबंध और केवल “हरित पटाखों” (Green Crackers) के सीमित उपयोग की अनुमति। इन पटाखों में बेरियम और अन्य हानिकारक धातुएं नहीं होतीं और इन्हें CSIR-NEERI द्वारा प्रमाणित किया जाता है।
2025 में न्यायालय ने दिल्ली सरकार के पूर्ण प्रतिबंध को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए कहा —
“हरित पटाखों को सीमित अवधि (18 से 20 अक्टूबर) तक अनुमति दी जाए।”
यह फैसला दिखाता है कि अदालत ने पर्यावरण संरक्षण और रोजगार सुरक्षा दोनों के बीच एक संतुलन साधने की कोशिश की।
साथ ही, अदालत ने पराली जलाने, वाहन उत्सर्जन, और निर्माण धूल को नियंत्रित करने के लिए भी सख्त निर्देश दिए। किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए वैकल्पिक तकनीक जैसे सुपर सीडर और बायो-डीकंपोजर के उपयोग पर ज़ोर दिया गया। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और यूपी सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि प्रदूषण के स्रोतों पर समय रहते कार्रवाई हो।
धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण
पटाखों पर प्रतिबंध ने समाज में दो धाराएँ बना दी हैं।
एक ओर पर्यावरण कार्यकर्ता और स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं, जो कहते हैं कि “धार्मिक परंपरा से ज़्यादा जरूरी है स्वच्छ हवा में सांस लेना।”
दूसरी ओर कुछ धार्मिक संगठन और राजनैतिक दल इसे “सनातन परंपराओं में हस्तक्षेप” बताते हैं।
हाल ही में 6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर “सनातन के अपमान” का नारा लगाते हुए जूता फेंकने की कोशिश की। इस घटना ने अदालत और समाज के बीच संवाद की आवश्यकता को फिर से उजागर किया।
कई लोगों ने यह दावा भी किया कि इसी दबाव के कारण कोर्ट ने ग्रीन पटाखों पर थोड़ी ढील दी, लेकिन अदालत के रिकॉर्ड और टिप्पणियों से स्पष्ट है कि निर्णय वैज्ञानिक और नीतिगत आधार पर लिया गया, न कि धार्मिक या राजनीतिक दबाव में।
मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट कहा —
“हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं, लेकिन स्वास्थ्य और पर्यावरण का अधिकार सर्वोच्च है।”
यह वक्तव्य इस पूरी बहस की दिशा तय करता है।
जीआरएपी-2: प्रदूषण से जंग का दूसरा चरण
ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) वायु प्रदूषण की गंभीरता के अनुसार चार चरणों में लागू होता है। फिलहाल लागू GRAP-2 तब सक्रिय किया जाता है, जब AQI “खराब” से “बहुत खराब” की ओर बढ़े।
इस चरण में लागू मुख्य प्रतिबंध हैं —
- निर्माण और ध्वंस कार्यों पर रोक, ताकि धूल का स्तर न बढ़े।
- कोयले और लकड़ी का उपयोग बंद — होटल, रेस्तरां और तंदूर अब केवल स्वच्छ ईंधन से चलेंगे।
- पुराने वाहनों पर रोक — 15 साल पुराने पेट्रोल और डीज़ल वाहनों को सड़कों से हटाने के आदेश।
- औद्योगिक इकाइयों की निगरानी — जो प्रदूषण मानकों का पालन नहीं कर रहीं, उन्हें बंद करने के निर्देश।
- सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा — निजी वाहनों की जगह मेट्रो और बसों का इस्तेमाल प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- आतिशबाज़ी पर प्रतिबंध — दीवाली के मद्देनज़र पटाखों की बिक्री और उपयोग पर सख्त नियंत्रण।
यह कदम भले ही अल्पकालिक हों, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण के लिए इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
प्रभाव और चुनौतियाँ
GRAP-2 और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का प्रभाव तभी दिखेगा जब इनका सख्ती से पालन हो।
- निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध से धूल घटती है, पर इससे दैनिक मज़दूरों की आजीविका पर असर पड़ता है।
- पटाखों पर रोक से प्रदूषण में कमी आती है, लेकिन अवैध बाजार अभी भी सक्रिय हैं।
- पराली जलाने पर निगरानी बढ़ी है, पर किसानों को पर्याप्त विकल्प और सहायता नहीं मिली है।
इन सबके बीच नागरिकों की भूमिका भी अहम है। अगर लोग अपनी जिम्मेदारी समझें — जैसे वाहनों का सीमित उपयोग, कचरा न जलाना, और हरित पटाखों को अपनाना — तो हवा की गुणवत्ता में वास्तविक सुधार देखा जा सकता है।
दीर्घकालिक समाधान की दिशा में
दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए अस्थायी उपायों से आगे बढ़ना होगा। कुछ स्थायी रास्ते इस प्रकार हैं —
- स्वच्छ ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाना – कोयले की जगह सौर और पवन ऊर्जा का विस्तार।
- सार्वजनिक परिवहन सुदृढ़ करना – इलेक्ट्रिक बसें, मेट्रो नेटवर्क और साइकिल पथ।
- कृषि अवशेष प्रबंधन – पराली को ऊर्जा स्रोत में बदलने वाले मॉडल लागू करना।
- हरित पटाखों को लोकप्रिय बनाना – सस्ते और आसानी से उपलब्ध विकल्प देना।
- क्षेत्रीय सहयोग – दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और यूपी के बीच साझा नीति बनाना।
- जन-जागरूकता बढ़ाना – स्कूलों और मीडिया के माध्यम से नागरिकों को शामिल करना।
निष्कर्ष
दिल्ली की हवा की समस्या किसी एक मौसम या त्योहार की नहीं, बल्कि जीवनशैली और नीति की विफलताओं की कहानी है।
सर्वोच्च न्यायालय की गाइडलाइंस और GRAP-2 दोनों इस दिशा में सही कदम हैं, पर समाधान तभी संभव है जब सरकारें, अदालतें और आम नागरिक एक साथ सोचें।
पटाखों पर बहस धर्म और परंपरा की नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और भविष्य की है।
अगर आज हम अपने बच्चों को स्वच्छ हवा नहीं दे पाए, तो कल कोई त्योहार, कोई उत्सव अर्थहीन रह जाएगा।
दिल्ली को सांस लेने लायक बनाने के लिए ज़रूरी है —
नीति में निरंतरता, प्रशासन में दृढ़ता और समाज में जिम्मेदारी।
संदर्भ
- Hindustan Times, “GRAP-2 restrictions imposed in Delhi ahead of Diwali as AQI nears ‘very poor’ category,” 20 अक्टूबर 2025।
- सर्वोच्च न्यायालय, Arun Goyal vs Union of India (2018) – पटाखों पर दिशा-निर्देश।
- CAQM और CPCB की वायु गुणवत्ता रिपोर्ट, अक्टूबर 2025।
- पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) की ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना’ रिपोर्ट, 2024।
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